परमाणु शक्ति से लेकर वैश्विक दबदबे तक: जानिए भारत की असली ताकत!

परमाणु

भारत की नीति:

भारत की परमाणु नीति एक संतुलित, रक्षात्मक और जिम्मेदार दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि मानती है और वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता जाहिर करती है। इसकी औपचारिक स्थापना वर्ष 2003 में हुई थी, जिसका आधार “पहले उपयोग नहीं” (No First Use – NFU) सिद्धांत है।


भारत की नीति के मुख्य सिद्धांत

भारत की नीति के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं:

सिद्धांतविवरण
पहले उपयोग नहींभारत तब तक परमाणु हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा जब तक उस पर परमाणु हमला न हो।
प्रतिशोधात्मक क्षमताहमले के जवाब में भारत का परमाणु हमला शत्रु को अपूरणीय क्षति पहुँचाएगा।
राजनीतिक नियंत्रणपरमाणु हथियारों के उपयोग का अंतिम निर्णय चुना हुआ राजनीतिक नेतृत्व लेता है।
गैर-परमाणु देशों के खिलाफ उपयोग नहींभारत परमाणु रहित देशों के विरुद्ध हथियारों का प्रयोग नहीं करेगा।
रासायनिक/जैविक हमले पर प्रतिक्रियारासायनिक या जैविक हमले की स्थिति में भारत परमाणु हथियारों के उपयोग का अधिकार सुरक्षित रखता है।
निर्यात नियंत्रणपरमाणु और मिसाइल तकनीक के निर्यात पर सख्त नियंत्रण।
वैश्विक निरस्त्रीकरणपरमाणु हथियारों के वैश्विक निरस्त्रीकरण का समर्थन।

लक्ष्य: न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध (Credible Minimum Deterrence) सुनिश्चित करना।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

  • 1940 के दशक: होमी जहांगीर भाभा द्वारा टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना।
  • 1974: पोखरण में भारत का पहला परीक्षण “स्माइलिंग बुद्धा”।
  • 1998: “ऑपरेशन शक्ति” के तहत पोखरण में पाँच और सफल परीक्षण, भारत को परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित किया गया।

परमाणु कमांड अथॉरिटी (NCA)

भारत में परमाणु हथियारों के नियंत्रण हेतु एक दो-स्तरीय ढांचा बनाया गया है:

परिषदअध्यक्षभूमिका
राजनीतिक परिषदप्रधानमंत्रीपरमाणु हथियारों के प्रयोग का अंतिम निर्णय।
कार्यकारी परिषदराष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA)राजनीतिक परिषद को सलाह देना और आदेशों का निष्पादन।

निर्णय प्रक्रिया में प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार और चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के अध्यक्ष शामिल होते हैं।
लॉन्च कोड संरक्षित रहता है, लेकिन लॉन्च ऑपरेशन निचले स्तर की परमाणु मिसाइल टीम द्वारा निष्पादित होता है।


वैश्विक संगठनों और संधियों में भारत की स्थिति

संगठन/संधिस्थापना वर्षउद्देश्यभारत की स्थिति
IAEA1957शांतिपूर्ण परमाणु उपयोगसहयोगी, पूर्ण सदस्य नहीं।
NSG1975परमाणु सामग्री निर्यात नियंत्रणसदस्यता हेतु प्रयासरत।
NPT1968परमाणु अप्रसारहस्ताक्षर नहीं किया।
CTBT1996परमाणु परीक्षण प्रतिबंधहस्ताक्षर नहीं किया।
BWC1975जैविक हथियारों पर प्रतिबंधसदस्य।
CWC1993रासायनिक हथियार प्रतिबंधहस्ताक्षरकर्ता व अधिनियम लागू।
ऑस्ट्रेलियाई समूह1985जैविक/रासायनिक निर्यात नियंत्रण2018 में शामिल हुआ।
वासेनार व्यवस्था1996हथियारों/द्विउपयोगी तकनीक नियंत्रण2023 में अध्यक्षता।
MTCR1987मिसाइल प्रौद्योगिकी नियंत्रण2016 से पूर्ण सदस्य।

नीति परिवर्तन पर बहस

भारत की “पहले उपयोग नहीं” नीति को लेकर समय-समय पर बहस होती रही है:

पक्ष में तर्कविपक्ष में तर्क
पाकिस्तान व चीन के बढ़ते परमाणु भंडार से खतरा।“पहले उपयोग नहीं” नीति भारत को जिम्मेदार शक्ति बनाती है।
उप-परंपरागत युद्धों में प्रतिक्रिया सीमित होती है।नीति बदलने से हथियारों की दौड़ शुरू हो सकती है।
आक्रामक रुख अपनाने की संभावना।वैश्विक छवि और कूटनीतिक लाभ प्रभावित हो सकते हैं।
क्षेत्रीय असंतुलन से निपटने के लिए लचीलापन चाहिए।GNFU जैसी वैश्विक पहलों को समर्थन मिलता है।

भारत की परमाणु नीति का उद्देश्य

  • राष्ट्रीय संप्रभुता और सीमाओं की रक्षा।
  • क्षेत्रीय खतरों के खिलाफ न्यूनतम विश्वसनीय प्रतिरोध बनाए रखना।
  • वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार शक्ति की छवि प्रस्तुत करना।


निष्कर्ष

भारत की परमाणु नीति एक संतुलित संयोजन है — जिसमें रक्षात्मक सोच, जिम्मेदार परमाणु प्रबंधन और वैश्विक निरस्त्रीकरण के प्रति प्रतिबद्धता शामिल है।
“पहले उपयोग नहीं” सिद्धांत भारत के नैतिक मूल्यों के अनुरूप है, लेकिन बदलती सुरक्षा परिस्थितियों में इसकी निरंतर समीक्षा होती रहती है।
आगे चलकर NSG जैसे वैश्विक समूहों में भारत की सक्रिय भागीदारी उसे और भी जिम्मेदार परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित करती रहेगी।

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