भारत कश्मीर विवाद भारत ने कश्मीर विवाद में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता प्रस्ताव पर क्या रुख अपनाया है? जानिए ऐतिहासिक संदर्भ, वर्तमान स्थिति और विशेषज्ञों की राय।
क्या भारत कश्मीर विवाद में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार करेगा?
बढ़ते तनाव में नया सवाल
नई दिल्ली,
हाल ही में पहलगाम में हुई घटना ने भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर तनाव बढ़ा दिया है। पाकिस्तान ने रूस और चीन जैसे देशों से मध्यस्थता की अपील की है। सवाल उठता है — क्या भारत इस बार तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार करेगा?
भारत का ऐतिहासिक रुख तीसरे पक्ष की मध्यस्थता पर
1. 1947: संयुक्त राष्ट्र का हस्तक्षेप
भारत ने कश्मीर विवाद को संयुक्त राष्ट्र में पेश किया था। हालांकि, यूएन प्रस्तावों और नियंत्रण रेखा (एलओसी) की स्थापना ने समस्या को उलझा दिया। इससे भारत ने सीखा कि बाहरी हस्तक्षेप समस्या सुलझाने के बजाय जटिलता बढ़ाता है।
2. 1960: सिंधु जल संधि और विश्व बैंक की भूमिका
विश्व बैंक की मध्यस्थता से बनी सिंधु जल संधि में भारत को जल बंटवारे में कई सीमाओं का सामना करना पड़ा। इससे तीसरे पक्ष पर भारत का अविश्वास और गहरा हुआ।
3. 1972: शिमला समझौता
भारत और पाकिस्तान ने स्पष्ट रूप से तय किया कि सभी विवादों का समाधान केवल आपसी बातचीत से होगा, बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के।
वर्तमान घटनाक्रम: पाकिस्तान का प्रस्ताव और भारत का जवाब
पाकिस्तान की मांग:
- रूस, चीन, से मध्यस्थता की अपील।
- पहलगाम घटना की स्वतंत्र जांच की मांग।
भारत की प्रतिक्रिया:
- भारत ने प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से खारिज किया।
- भारत का कहना है कि वह अपनी संप्रभुता से समझौता नहीं करेगा।
- सरकार का मानना है कि बाहरी मध्यस्थता से भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप बढ़ेगा।
भारत के हालिया कदम
- सिंधु जल प्रवाह रोकना: भारत ने सिंधु जल संधि के तहत पानी के प्रवाह को सीमित करने का फैसला लिया है।
- आंतरिक सुरक्षा अभियान: जम्मू-कश्मीर में आतंकियों के खिलाफ सघन अभियान चलाए जा रहे हैं।
- डिजिटल स्ट्राइक: 16 पाकिस्तानी यूट्यूब चैनलों पर बैन लगाया गया है।
- कूटनीतिक पहल: अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत अपना पक्ष मजबूती से रख रहा है।
विशेषज्ञों का विश्लेषण: भारत क्यों टिका रहेगा?
1. संप्रभुता का सवाल
भारत अपनी राष्ट्रीय अखंडता और संप्रभुता को सर्वोपरि मानता है। मध्यस्थता स्वीकार करना इन मूल्यों के विपरीत होगा।
2. कूटनीतिक दृष्टिकोण
तीसरे पक्ष को शामिल करना भारत की वैश्विक स्थिति को कमजोर कर सकता है, खासकर जब भारत आज एक उभरती महाशक्ति के रूप में देखा जाता है।
3. ऐतिहासिक अनुभव
यूएन और विश्व बैंक के हस्तक्षेपों ने पहले विवादों को हल करने की बजाय बढ़ाया है।
निष्कर्ष: क्या भारत मध्यस्थता स्वीकार करेगा?
संक्षेप में कहें तो — नहीं।
इतिहास, कूटनीति और संप्रभुता की रक्षा की नीति को देखते हुए भारत कश्मीर विवाद में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता स्वीकार नहीं करेगा। भारत द्विपक्षीय वार्ता के जरिये ही समाधान चाहता है, जैसा कि शिमला समझौते में तय हुआ था। आने वाले समय में भी भारत का यही रुख बने रहने की संभावना है।